Satguru Baba Hardev Ji Maharaj
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Nirankari mission |
Nirankari mission Choberge.
तेरी रहमतों ने संवारा मुझे
सजाया मुझे आज निखारा मुझे डूबा
हुआ था परेशानियों में सभी
मुश्किलों से उभारा मुझे
परमात्मा के दुलारी बिना मिट्टी
के कण हो सितारे भर भूखे की रोटी
सहारे बनो जगत में रहो न्यारे
बनो जगत में रहो पर न्यारे बन
सागर में लहरें उठती लहरों
में सागर बसता है लहरों में सागर
बसता है छुपा हुआ है लहर के अंदर
सागर का असली रहता है सागर का
असली जाता है
तुम्हें झूठ कहना आता नहीं है तो
भी झूठ कहना आता नहीं है मुझे सच
तुम्हारा फायदा नहीं है ना वहीं
पर जहां से चला था प्रभु से
जुड़ा कोई नाता नहीं है प्रभु से
जुड़ा कोई नाता नहीं है तेरी
रहमतों ने संवारा मुझे सजाया
मुझे और निखारा मुझे डूबा
हुआ था परेशानियों में सभी
मुश्किलों से उभारा मुझे
परमात्मा के दुलारे बिना मिट्टी
के कण हो सितारे भर भूखे की रोटी
सहारे बनो जगत में रहो पर न्यारे
बनो जगत में रहो पर न्यारे बना
सागर की लहरें उठती है लहरों में
सागर बसता है लहरों में सागर
बसता है छुपा हुआ हर लहर के अंदर
ठाकरे का असली रहता है सागर का
असली रहता है तुम्हें झूठ कहना
आता नहीं है कि झूठ बोलना आता
नहीं है मुझे सच तुम्हारे भाता
नहीं है हम वहीं
पर जहां से चला था प्रभु से
जुड़ा कोई नाता नहीं है प्रभु से
जुड़ा कोई नाता नहीं है अभी
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धन
निरंकार जी
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Nirankari Mission कविता|
तेेरे भावों को जब मैंने शब्दों का परिधान दिया है। इस जग ने
मेरी रचना को कविता का सम्मान दिया है। तूने जो भी लिखवाया
है, मैंने गीत वही गाया है। शब्द शब्द में लिपटी देखी तेरे भावों की छाया है। हर एक शब्द
समर्पित तुमको भाव तुम्हें लौटाता हूं मैं। तुम जब मुझ को बल
देती हो, गीत तुम्हारे गाता हूं मैं। जो भी गीत लिखा है मैंने
वह तो तुम्हारा निकला जिसको मैंने अपना समझा माल पराया। सरा
निकला। कला तुम्हारी रेत थिरकती, कला तुम्हारी रेत थिरकती
कलाकार के अंतर्मन में शहज अवस्था देदो गुलसन हर मानव को इस जीवन में।।
सहज अवस्था दे दो गुलशन हर मानव को इस तेरी बाहों को जब मैंने शब्दों
का परिधान दिया है। इस जग ने मेरी रचना को कविता का सम्मान
दिया है। तूने जो भी लिखवाया है मैंने वही गया है 36 हफ्ते
में लिखते तेरे भागों की छाया। हर एक शब्द समर्पित तुमको अब
तुम ही लौट आता हूं मैं। तुम जब मुझ को बल देती हो, यह तुम्हारे
कातिल में जो भीगी लिखा है, मैंने वह तो तुम्हारा निकला जिसको
मैंने अपना समझा माल पराया। तारा निकला करना तुम्हारी रे तू
धड़कती कला तुम्हारी रिस्पेक्ट कलाकार के अंतर्मन में शहद अवस्था
दे दो। हर मानव जीवन में जगह दे दो गुलशन हनुमान अवस्थी। कभी
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